कोरोना के डर से घरों में नमाज़ अदा करना कैसा है?

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  • कुछ खाडी देश जिन में सऊदी अरब भी शामिल है, वहां की राज्य सरकार की तरफ से मस्जिदों में पंज वक्ता और नमाज़े जुमा पर पाबन्दी लगाने से मुस्लिम समाज में यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या ऐसा करना सही है?, क्या क़ुरआन व हदीस की रोशनी में मस्जिद बन्द करने और फराइज़ घरों में पढ़ने की गुन्जाइश है?
  • आम लोगे के बीच उपरोक्त प्रश्न का उठना स्वाभाविक है क्योंकि यह आस्था (इबादत) का मामला है।
  • इस सम्बन्ध में शोसल मीडिया पर विभिन्न प्रकार का लेख पढ़ने को मिला। (इस विषय मे लोग सऊदी हुकूमत पर व्यंगात्मक, नकारात्मक टिप्पणी भी करते नज़र आए हैं)
  • सब बातों को ध्यान में रखते हुए इस मसले को किताब व सुन्नत की रोशनी में स्पष्ट करने का प्रयास कर रहा हूं। अल्लाह तआला मुझे सत्य बात कहने की प्रेरणा दे।
  • इस्लामी शिक्षाओं में कठिन परिस्थिति के समय आसानी अपनाने और ख़तरे या नुकसान से बचने हेतु सावधानी के उपाय अपनाने का आदेश दिया गया है। और अपनी जानों को हलाकत में डालने से सख़्ती से मना किया गया है।
  • इस सम्बन्ध में बहुत सारे प्रमाण मौजूद हैं जो बहुत से लोगों को मालूम है। जहां तक महामारी के डर से मस्जिदों को बन्द करने और फराइज़ को घरों में अदा करने की बात है, तो उसका जवाब यह है। कि कई एक हदीसों से हमें पता चलता है कि तेज़ बारिश या आंधी तूफान के कारण लोगों को अपने अपने घरों में नमाज़ अदा करने का आदेश दिया जा सकता है।
  • जैसे कि अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने एक ठन्डी और बरसात की रात में अज़ान दी फिर यूं पुकार कर कह दिया
  • “कि लोगो!! अपनी ठहरने की जगहों (अर्थात:घरों) पर नमाज़ पढ लो।”
  • फिर फरमाया:-
  • नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम सर्दी की रातों में मुवज्जिन को हुक्म देते थे कि वह ऐलान कर दे कि लोगो अपने घरों में नमाज़ अदा कर लो।
  • इसी तरह सहीह बुखारी (६६८) में है कि अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने जुमा के दिन खुतबा सुनाया और बारिश व कीचड़ के कारण मुवज्जिन को यह हुक्म दिया कि अज़ान आज (हय्या अलस्सलात) के जगह यूं पुकार दो (अस्सलात फिर्रिहाल) यानी नमाज़ अपने घरों में पढ़ लो।
  • जब लोग आपके इस बात पर अचम्भित हुए तो उन्होंने कहा कि
  • अर्थ: “ऐसा जान पड़ता है कि तुम ने शायद इसको बुरा जाना है। ऐसा तो मुझसे बेहतर हस्ती यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने भी किया था। बेशक जुमा वाजिब है मगर मैं ने यह पसन्द नहीं किया कि (हय्या अलस्सलाह) कह कर तुम्हें बाहर निकालूं।
  • सहीह बुखारी की इन दोनों हदीसें पर ग़ौर करें तो मालूम होता है कि बारिश और कीचड़ की वजह से बस्ती और मुहल्ले के लोग मस्जिद के बजाय अपने घरों में नमाज़ अदा कर सकते हैं।
  • एक व्यक्ति जिसके बारे मे कन्फ़र्म पता है कि इसको वबाई मर्ज़ है तो उस से दूरी बनाइ जा सकती है। जैसा कि नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने एक कोढ़ी आदमी से बैअत नही ली थी।
  • नोट: जो लोग यह कहते हैं कि कोरोना वाइरस के डर से मस्जिदों को बन्द करना और घरों में नमाज़ अदा करना ईमान की कमज़ोरी है और यह अल्लाह पर तवक्कल के खिलाफ है। उन से कहना चाहूँगा कि जहाँ हलाकत का ख़तरा हो तो उससे बचाव के साधन और सावधानीपूर्वक उपाय अपनाना न तो ईमान की कमज़ोरी है और न ही अल्लाह पर तवक्कल के खिलाफ है।
  • इस से न तो नमाज़ का महत्व घटता है और न ही फरीज़ा खतम होता है। नमाज़ तो कीसी भी हाल में माफ ही नही है। फिर नमाज़ पढ़ने वाला खुद को कमज़ोर ईमान वाला कैसे कह सकता है। क्या कोइ रोग निवारण का साधन या उपाय अपनाना ईमान के और अल्लाह पर तवक्कल के खिलाफ है? नहीं नहीं कभी नहीं।
  • असल में कोढ़ी से दूर रहने का हुक्म तो तदबीरे नबवी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम है।
  • नबी करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का फरमान है।
  • * जिस इलाके में वबा फैली हो उस इलाके में न जाया जाए। और न उस इलाके के लोग वहाँ से भागें बल्कि अल्लाह पर भरोसा रखें*

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